भारत में अगर हमें किसी की तारीफ करनी हो तो. वे कितनी खूबसूरत हैं, तो हम तुलना करते समय सौंदर्य की देवी अप्सरा उर्वशी का जिक्र जरूर करते हैं। पौराणिक कथाओं में जिस खूबसूरत अप्सरा उर्वशी का जिक्र मिलता है, उससे जुड़ी एक कहानी यह भी है कि कैसे उसने ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग की थी। इनका मंदिर भारत में कम ही देखने को मिलता है।
उर्वशी ने ही करी थी विश्वामित्र की तपस्या भंग
आज हम आपको देवी उर्वशी के एक ऐसे ही दुर्लभ मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां उन्हें सुंदरता की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर चमोली जिले में बद्रीनाथ के पास बामणी गांव में स्थित है। बेहद साधारण संरचना वाले इस मंदिर में देवी उर्वशी की मूर्ति स्थापित है।
ऐसा कहा जाता है कि देवी उर्वशी की उत्पत्ति बद्रिकाश्रम में भगवान विष्णु (नारायण) की बायीं जांघ से हुई थी। अलकनंदा के तट पर स्थित यह मंदिर नारायण और नीलकंठ पर्वत की गोद में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक और कहानी यह भी है कि जब भगवान विष्णु ने बद्रीनाथ क्षेत्र में अवतार लिया तो देवराज इंद्र ने सोचा कि शायद नारायण को ही उनकी गद्दी संभालनी चाहिए। उन्होंने नारायण का ध्यान भटकाने के लिए सुंदर अप्सराएँ भेजीं, लेकिन उनका नारायण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
इंद्र की इन हरकतों को देखकर नारायण ने अपनी जांघ पर कमल का स्पर्श किया, जिससे एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई, जिसे देखकर सभी अप्सराएं लज्जित हो गईं। इसके बाद नारायण ने इंद्र से कहा कि वह केवल आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहे हैं। भगवान नारायण की जंघा से उत्पन्न अप्सरा का नाम ‘उर्वशी’ था, जिसका मंदिर चमोली में स्थित है। उर्वशी मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले एनएच 7 से बद्रीनाथ धाम पहुंचना होगा।
बामणी गांव बद्रीनाथ से 300 मीटर की दूरी पर है, जहां से कुछ दूरी पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर के पास ऋषिगंगा का एक खूबसूरत झरना भी है, जो इस जगह की सुंदरता को और भी बढ़ा देता है। यही कारण है कि बद्रीनाथ धाम आने वाले प्रकृति प्रेमी यहां जरूर आते हैं।