पलायन को पहाड़ की भुली ने दिखाया आईना, नैनीताल की पूजा मेहता ने गोबर पर ऐपन बनाकर ढूंढी स्वरोजगार की राह

आज हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के उन युवाओं की मुश्किलों के बारे में जो मेहनत करके अपना रोजमर्रा का काम निपटाते थे। लेकिन क्या होगा अगर हम आपसे कहें कि आखिरकार उन्होंने वहां से मेहनत का रास्ता निकाल लिया है। उन्होंने अपने गांव-पहाड़ों में रहकर स्वरोजगार के नए-नए तरीके अपनाए हैं, न सिर्फ वे अपनी काबिलियत के दम पर अपनी आजीविका चला रहे हैं बल्कि अपने बुलंद हौसलों से बेकार समझी जाने वाली कई चीजों का भी सदुपयोग कर रहे हैं।

गोबर से बना डाली ईको फ्रेंड्ली घड़ी

पहाड़ के कई युवाओं ने गाय के गोबर को स्वरोजगार का जरिया बनाया है। आज हम आपको प्रदेश की एक और ऐसी होनहार बेटी से मिलवाने जा रहे हैं जो अपनी क्रिएटिविटी से गाय के गोबर से कई उत्पाद बना रही है। हम बात कर रहे हैं राज्य के नैनीताल जिले के तवालेख गांव की रहने वाली पूजा मेहता की, वह कुमाऊं की लोक कला ऐपण कला को संजोकर न केवल स्वरोजगार का माध्यम है, बल्कि विभिन्न उत्पाद बनाती है, लेकिन गाय के गोबर से कई नए शिल्प भी बना चुकी है।

पूजा ने बताया कि उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा राजकीय विद्यालय राजकीय इंटर कॉलेज ढोकने से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने सोबन सिंह जीना कैम्पस, अल्मोडा से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इतनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह राज्य के अधिकांश युवाओं की तरह शहरों में जाकर आसान नौकरी पा सकती थी। लेकिन इसके बजाय उसने बड़ी योजना बनाई। उन्होंने राज्य के युवाओं की पसंदीदा मुख्य समस्या को हल करने का प्रयास किया।

काफी विचार विमर्श के बाद उन्होंने दो वर्ष पूर्व कुमाऊं की लोक विरासत ऐपण को स्वरोजगार के रूप में अपनाने का निर्णय लिया। आपको बता दें कि पूजा एक सामान्य परिवार से हैं और वह खेती करके अपना जीवन यापन करती हैं। करीब एक साल तक कड़ी मेहनत करने के बाद जब उन्हें इसमें सफलता मिलने लगी तो उन्होंने इसी गाय के गोबर से कुछ अलग करने की सोची। उन्होंने गाय के गोबर से उत्पाद बनाने पर शोध करना शुरू किया, ताकि वह दुनिया के सामने कुछ अलग और पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद पेश कर सकें।

पूजा ने बताया कि छह महीने की कड़ी मेहनत के बाद अब वह गाय के गोबर से अच्छे उत्पाद बना रही हैं, जो न केवल देखने में खूबसूरत लगते हैं बल्कि इन्हें बनाने या इस्तेमाल करने से पर्यावरण के अनुकूल भी होते हैं। वह कहती हैं कि अब तक वह गाय के गोबर से कोस्टर, दीये, घड़ी, ओम, स्वास्तिक, राखी और भारत का नक्शा बना चुकी हैं और कई अन्य चीजें बनाने की कोशिश कर रही हैं।

वह कहती हैं कि छह महीने तक काफी शोध और प्रयोग के बाद उन्होंने गाय के गोबर से अपने पहले उत्पाद के रूप में कोस्टर बनाए। जिसके लिए उन्होंने गाय के गोबर को मिट्टी और पेड़ों के गोंद से गूंथकर कोस्टर बनाया। अपने उत्पाद को सुंदरता देने के लिए उन्होंने उस पर गेरू मिट्टी का लेप लगाया और उसमें ऐपण बनाए।

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