चमोली के बंधान गढ़ी का दक्षिणेश्वर काली मंदिर, आजतक कोई भी श्रद्धाओ नहीं गया यह से खली हाथ

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देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों देवता हैं। यहां कई मंदिर बने हुए हैं। अन्य मंदिरों की तरह तीरे भी एक प्राचीन मंदिर है, दक्षिणेश्वर मां काली मंदिर, जो कि चमोली जिले में स्थित है।यह मंदिर गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित है, जिसे गढ़ परगना बधाण के नाम से जाना जाता है, यह 52 गढ़ों में से एक है।

ग्वालदम गांवों की कुल देवी हैं नंदा राजराजेश्वरी दक्षिणेश्वर काली

बधाण गढ़ी को बधाण परगना का अधिष्ठाता देवता भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां मां भगवती नंदा राजराजेश्वरी दक्षिणेश्वर काली के रूप में भूमिगत निवास करती हैं। इस मंदिर में आप आज भी प्राचीन कलाकृतियाँ देख सकते हैं। यह मंदिर अपनी प्राचीन मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है।

21वीं सदी में इस प्राचीन मंदिर में पीने का पानी कुएं से लिया जाता है। मंदिर के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। मंदिर से त्रिशूल, नंदा घुघुति और पंचाचूली पर्वत की बर्फ श्रृंखलाएं दिखाई देती हैं, जो लोगों का मन मोह लेती हैं।

हरे-भरे पेड़ों से घिरे इस मंदिर की खूबसूरती को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्रों के लोगों की मां बधाण गढ़ी में अटूट आस्था है। कहा जाता है कि मां बधान गढ़ी सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। यही कारण है कि यहां के लोग हर दिन मंदिर जाते हैं।

समुद्र तल से इस स्थान की दूरी 8612 फीट है। मां बधान गढ़ी का मंदिर ग्वालदम से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यह एक समय उपजाऊ क्षेत्र था और इसके लिए कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र के बीच हमेशा झगड़ा होता रहता है। यहां पहुंचने के लिए बीनाटोली से 2 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती है।

किसी समय यह स्थान राजाओं का गढ़ हुआ करता था, लेकिन आज सरकार इस स्थान के प्रति लापरवाही बरत रही है। उचित देखभाल के अभाव में यह स्थान खंडहर में तब्दील हो गया है। यह मंदिर पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। अगर सरकार मंदिर के सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार पर ध्यान दे तो यह मंदिर धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ रोजगार का भी आधार बन सकता है।