पलायन से बचने के लिए स्वरोजगार ही है बेहतर विकल्प, उत्तराखंड के वाइब्रेंट गांव में सेब की खेती बना रही आत्मनिर्भर

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

उत्तराखंड से पलायन को हराने के लिए लोगों को स्वरोजगार को एक साधन के रूप में अपनाना चाहिए।अब, हाल ही में पहाड़ के लोग पलायन की समस्या को समझने लगे हैं और राज्य में ही रहकर रोजगार के अवसर पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में सरकार के कई प्रयासों के बाद, पिथौरागढ़ जिले के पहले जीवंत गांव गुंजी में सेब की खेती भी लोगों के लिए आय का बेहतर जरिया बन रही है। तीन साल पहले उद्यान विभाग ने यहां के ग्रामीणों को सेब के पौधे उपलब्ध कराए थे।

कैसे शुरु हुई गुंजी में सेब की खेती

तीन साल बाद अब यहां साढ़े दस हजार फीट की ऊंचाई पर अच्छी गुणवत्ता वाले सेब की खेती हो रही है। एक दशक पहले भी यहां सेब का खूब उत्पादन होता था, लेकिन बाजार में सस्ते हिमाचली सेब आने के बाद लोगों ने सेब उत्पादन की ओर ध्यान देना बंद कर दिया और ओटी बंद कर दी गई।

बाद में गुंजी गांव सड़क मार्ग से जुड़ गया और सेब उत्पादन के लिए उपजाऊ और उचित वातावरण देखकर बागवानी विभाग ने यहां सेब उत्पादन शुरू करने की योजना बनाई। इसके लिए ग्रामीणों को अच्छी गुणवत्ता के स्वादिष्ट सेब के पौधे उपलब्ध कराए गए और तीन साल बाद ये पेड़ सेब से लदे नजर आ रहे हैं। इस साल गांव में सेब का उत्पादन दो से ढाई क्विंटल होने की उम्मीद है।

यह निश्चित है कि ये सेब पूरी तरह से जैविक हैं, सड़क बनने के बाद इन्हें आसानी से बाजार तक पहुंचाया जा सकता है। सीमावर्ती गांव होने के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए साल भर ताजे फलों की मांग रहती है। ऐसे में गांव में पैदा होने वाले सेब सुरक्षा बलों द्वारा ही खाये जाने की आशंका है। जिला उद्यान अधिकारी त्रिलोकी राय ने बताया कि गुंजी के साथ-साथ मुनस्यारी और धारचूला में भी सेब का उत्पादन शुरू हो गया है।