उत्तराखंड में एक विवाह ऐसा भी, बागेश्वर में जीवित हुई पुरानी परंपरा पीपल और बरगद के पेड़ की अनोखी शादी के लिए दिल्ली मुंबई से आए बाराती

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विवाह हमारे जीवन में एक पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। लड़के और लड़की की शादी तो सभी ने देखी होगी, लेकिन क्या आपने कभी पेड़ों की शादी के बारे में सुना है? जी हां ऐसा सच में हुआ, उत्तराखंड में बागेश्वर जिले में पीपल और बरगद के पेड़ की अनोखी शादी का आयोजन किया गया। यहां बरगद के पेड़ को दूल्हा बनाया गया जबकि पीपल के पेड़ को दुल्हन की तरह सजाया गया। उत्तराखंड सदियों से देवभूमि के नाम से मशहूर है, यहां कई महान चीजें हैं। यहां आप खूबसूरत वादियों के साथ-साथ अनोखी संस्कृति और परंपराओं का संगम भी देख सकते हैं।

पुरे राज्य में एसी अनोखी परंपरा बनी हु॓ई है चर्चा का विषय

यहां चारधाम हैं – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री – जो हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यही कारण है कि उत्तराखंड देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाये हुए है। हाल ही में बागेश्वर जिले में वर्षों पुरानी एक अनोखी परंपरा पुनर्जीवित हो गई। इसी परंपरा के तहत दफौट क्षेत्र के म्याऊं गांव में पीपल और बरगद के पेड़ की शादी धूमधाम से कराई गई, इस अनोखी शादी के लिए नैनीताल से आए आचार्य के.सी.सुयाल. पहुंचे और शादी देखी और शगुन आंखर गाया।

इस शादी में नैनीताल, हलद्वानी, दिल्ली और यहां तक ​​कि मुंबई से भी प्रवासी शामिल हुए और बरगद के पेड़ को दूल्हा बनाकर पालकी में बिठाया और गांव के गोलज्यू मंदिर ले गए, जिसके बाद बारात सड़क मार्ग से गुजरी संगीत वाद्ययंत्रों और पारंपरिक नृत्य के साथ गाँव का। गांव के हरजू सैम और देवी मंदिर के प्रांगण में पहुंचे, जहां सभी विवाह कार्यक्रम आयोजित किए गए। ग्रामीणों ने मंदिर में पीपल के पेड़ को दुल्हन की तरह सजाया था। वेद मंत्रोच्चारण के साथ विवाह की सभी रस्में पूरी की गईं। पुजारी आचार्य केसी सुयाल ने कहा कि सनातन संस्कृति में वृक्ष पूजन और पर्यावरण संरक्षण जैसे आयोजन किसी अन्य संस्कृति में देखने को नहीं मिलते।

इस आयोजन पर लेखक और पर्यावरणविद् हरीश जोशी ने कहा कि ऐसे आयोजनों से समाज को एकजुट करने में मदद मिलती है और विलुप्त हो रही परंपराओं को भी पुनर्जीवित किया जाता है. यह परंपरा हमारी संस्कृति में वर्षों पहले से विद्यमान थी। संस्कृति को जीवित रखना एवं उसका पालन करना हम सभी का प्राथमिक दायित्व है। उन्होंने कहा कि यही संस्कृति हमें सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से एकजुट रखती है। मूल संस्कृति को आज के समाज तक पहुंचाने का एकमात्र तरीका उसका जश्न मनाना है। आज का कार्यक्रम नई पीढ़ी के लिए मिसाल बनेगा।