क्या है उत्तराखंड की प्रसिद्ध प्रेम राजुला मालुशाही की कहानी, कोक स्टूडियो में के नए गाने “सोनचढ़ी” कि यही है कहानी

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आज के युग में प्यार एक अलग आयाम है जो हर चीज को संभव बना सकता है यह सिर्फ पाने की चाहत और भौतिकवाद तक ही सीमित नहीं है। दूसरी ओर, दुनिया भर में कई प्रेम कहानियां हैं। लेकिन हम उत्तराखंडियों को राजुला मालूशाही की एक ऐसी अमर प्रेम कहानी पर गर्व है जो लोगों को धैर्यवान बनाती है। तो आइए आज हम आपको राजुला और मालूशाही की अमर प्रेम कहानी से परिचित कराते हैं और कैसे इन प्रेमियों का मिलन हुआ। आपको बता दें कि राजुला-मालूशाही लोककथा उत्तराखंड स्थित कुमाऊं के पहले राजवंश कत्यूर के राजकुमार मालूशाही और शौका राजवंश की लड़की राजुला की कहानी है।

कौन है राजुला मालुशाही कैसे बने प्रेमी

यह कहानी 15वीं शताब्दी की है जब कत्यूर राजवंश की राजधानी बैराठ (वर्तमान चौखुटिया) कहलाती थी। कहा जाता है कि बैराठ पर तब राजा दुलाशाही का शासन था और वह निःसंतान थे। तब तमाम पूजा-अनुष्ठान करने के बाद भी संतान न होने पर किसी ने राजा को मकर संक्रांति के दिन बाघनाथ (अब बागेश्वर) में भगवान शिव की पूजा करने की सलाह दी। दूसरी ओर, इसी शताब्दी में दारमा की सुरम्य घाटी पंचाचूली (अब पिथौरागढ़) की तलहटी में स्थित ग्राम दांतू के एक धनी व्यापारी सुनपति शौका की भी यही स्थिति थी। शौक की पत्नी गंगोली शौकयानी निःसंतान होने के दुःख से पीड़ित थी।

फिर एक दिन उसने अपने पति सुनपति से मकर संक्रांति के दिन बाघनाथ जाकर भगवान शिव की पूजा करने को कहा और मकर संक्रांति के दिन दोनों सरयू गोमती के संगम पर स्थित बाघनाथ पहुंचे। उसी समय राजा दुलाशाही और उनकी पत्नी धर्मादेवी भी संतान प्राप्ति की इच्छा से इस स्थान पर आये। फिर संयोग से, गंगोली और धर्मादेवी का परिचय होता है और उनकी समान पीड़ाओं के कारण, वे दोस्त बन जाते हैं और दोनों महिलाएं बेटा या बेटी होने पर एक-दूसरे से शादी करने का वादा करती हैं। कुछ समय बाद बाघनाथ के आशीर्वाद से राजा दुलाशाही, राजकुमार मालू और व्यापारी सुनपति के घर राजुला का जन्म होता है।

कैसे करा दोनों ने प्यार का इजहार

धीरे-धीरे नायक मालूशाही और नायिका राजुला बचपन की दहलीज पार कर युवावस्था में कदम रखते हैं। बैराठ में नायक मालूशाही जवान हो रहा था और राजुला के मन में मालूशाही के प्रति प्रेम जागने लगा और वह उससे मिलने के लिए व्याकुल हो गयी. राजुला अपनी मां से कहती है कि आप मेरी शादी रंगलो बैराठ में ही कर दीजिए और इसी दौरान राजुला को पता चलता है कि पिता सुनपति व्यापार के सिलसिले में बैराठ जा रहे हैं। राजुला के पिता उसकी माँ के आग्रह पर उसके साथ बैराठ जाने को तैयार हो जाते हैं।

बागेश्वर के बाघनाथ मंदिर पहुंचकर वहां राजुला को मालूशाही के दर्शन होते हैं तब उसे पता चलता है कि राजा मालूशाही रोज सुबह अग्नयारी देवी के दर्शन के लिए जाते हैं। इसके बाद एक दिन वह मंदिर जाती है जहां हर दिन की तरह मालूशाही भी आता है. यहां दो प्रेमी मिलते हैं और मालूशाही राजुला से वादा करता है कि एक दिन वह उससे शादी करने के लिए दारमा जरूर आएगा। यह कहकर वह राजुला को अपने प्यार की निशानी के रूप में मोतियों की माला पहनाता है जब राजुला मंदिर से लौटती है। राजुला के पिता सुनपति उससे बार-बार पूछते हैं कि उसके गले में मोतियों का हार किसका है? जब वह जवाब देने में असमर्थ थी तो क्रोधित होकर उसके पिता ने उसकी शादी राजा ऋषिपाल से कर दी, जो उसकी उम्र से दोगुना था।

किस बात पर हुए अलग और कैसे हुआ कहानी का सुखद अंत

राजुला खुद बैराठ की यात्रा पर निकल पड़ती है, वहीं बैराठ में मालू की राजुला से मिलने और उससे शादी करने की जिद के कारण उसे जड़ी-बूटी की मदद से 12 साल तक गहरी नींद दी जाती है। सात रातों का बेहद कठिन सफर. राजुला बैराठ आती है और सोते हुए मालूशाही को जगाने की कोशिश करती है, लेकिन जड़ी-बूटी के तेज प्रभाव के कारण वह जाग नहीं पाता है, तब राजुला मालूशाही को हीरे की अंगूठी पहनाती है और उसके तकिये पर एक पत्र रखती है और अपने देश वापस लौट जाती है। जिसमें राजुला लिखती है कि मालू, मैं तुम्हारे पास आई थी, लेकिन तुम सो रहे थे, अगर तुमने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश में आ जाओ। मेरे पिता अब वहां मेरी शादी कर रहे हैं और मालूशाही राजुला को लाने के लिए निकल पड़ता है।

राजुला और मालूशाही के लिए यह सबसे कठिन और परीक्षण का चरण था। मालूशाही ने राजुला के लिए अपना राजपाठ त्याग दिया और सिद्ध गुरु गोरखनाथ की शरण ली और मालूशाही के अपार प्रेम को देखकर गुरु गोरखनाथ उसकी मदद करने के लिए तैयार हो जाते हैं। फिर वह मालूशाही को दीक्षा की शिक्षा देता है और इसके बाद मालूशाही गुरु गोरखनाथ का आशीर्वाद लेता है और साधु के वेश में राजुला को लेने के लिए हूण देश के लिए निकल पड़ता है। राजा मालूशाही साधु के वेश में घूमते-घूमते ऋषिपाल के महल में पहुंच जाते हैं। वहां जब नवविवाहिता राजुला सोने की थाली में भिक्षा लेकर आती है तो मालूशाही उसे देखता रह जाता है लेकिन राजुला उसे पहचान नहीं पाती है।

वह पूछती है कि जोगी मुझे बताओ कि मेरे हाथ पर क्या लिखा है, फिर साधु मालूशाही बनकर कहता है कि मैं नाम और गांव बताए बिना हाथ नहीं देखता। तब राजुला उन्हें बताती है कि वह सुनपति की बेटी राजुला है। यह सुनकर मालूशाही अपना साधु का वेश उतार फेंकता है और कहता है राजुला मैंने तुम्हारे लिए ही साधु का वेश बनाया है, मैं तुम्हें यहां से मुक्त कराऊंगा। ऐसा कहा जाता है कि राजुला ने मालूशाही को ऋषिपाल से मिलवाया था और जोगी के व्यक्तित्व को देखकर ऋषिपाल के मन में संदेह पैदा हुआ।

बैराठ के राजा मालूशाही की सच्चाई जैसे ही ऋषिपाल को पता चलती है तो वह उसे खीर में जहर देकर मार देता है और यह देखकर राजुला भी तुरंत बेहोश हो जाती है। तब गुरु गोरखनाथ बोकसादि विद्या से मालू को जीवित कर देते हैं। आपको बता दें कि इसके बाद मालू महल में जाता है और राजुला को होश में लाता है, जिसके बाद राजा मालूशाही राजुला को अपने देश बैराठ ले जाते हैं और वहां दोनों की शादी बड़े धूमधाम से होती है।