उत्तराखंड की कंचन डिम्री की कहानी सुनने के बाद आप भी करेंगे सलाम, जानिए कैसे रुद्रप्रयाग की बेटी कंचन मामूली घर से बनी IAS

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

चाहे एथलेटिक्स हो या फिर शिक्षा या फिर डिफेंस, हर क्षेत्र में पहाड़ की बेटियां अपनी प्रतिभा से उत्तराखंड का नाम रोशन कर रही हैं। वे हर क्षेत्र में अपनी सफलता का परचम लहरा रहे हैं। इस सफलता के पीछे पहाड़ की बेटियों की जिद है जो उन्होंने कड़ी मेहनत और कठिन संकल्प लेने के लिए बनाई। आज हम बात कर रहे है रुद्रप्रयाग की कंचन डिम्री की।

वर्ल्ड कप जीतने से कम नहीं था IAS बनना

आज हम बात कर रहे हैं रुद्रप्रयाग जिले के जखोली ब्लॉक के भरदार की बेटी कंचन डिमरी के बारे में, उन्होंने इस साल एक उपलब्धि हासिल की जब उनका चयन आईएएस के तौर पर हुआ। इसके बाद उनकी सफलता पर न केवल उनके परिवार में बल्कि पूरे स्वेली गांव और यहां तक ​​कि पूरे राज्य खासकर रुद्रप्रयाग जिले में खुशी की लहर दौड़ गई। आज हम आपको आईएएस कंचन के बारे में बताने जा रहे हैं।

बेहद सामान्य परिवार में पली बढ़ी कंचन। जहां गांव की एक लड़की को स्कूल भेजना बहुत बड़ा काम है, वहां इस बेटी का आईएएस परीक्षा पास कर लौटना वर्ल्ड कप जीतने जैसा है। कंचन ने यह सफलता अपने संसाधनों से हासिल की है। कंचन के इंटरव्यू का वीडियो वायरल हो रहा है, इससे पता चलता है कि आईएएस बनना कितना कठिन है और इसके लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है।

रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय के निकट पश्चिमी भरदार पट्टी के स्वेली गांव की कंचन डिमरी पिता श्री देवी प्रसाद डिमरी संघ लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठित परीक्षा में 654वीं रैंक प्राप्त करने में सफल रहीं। कंचन 25 साल की कंचन का जन्म रुद्रप्रयाग के सुदूर गांव में हुआ है। कंचन के दादा श्री घनानंद डिमरी (अब दिवंगत) भारतीय सेना के सेवानिवृत्त सैनिक थे।

प्रारंभ में, अपने भाई के साथ गाँव के स्कूल में बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के बाद कंचन अपने माता-पिता के साथ दिल्ली चली गईं। कंचन बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थीं, उन्होंने केंद्रीय विद्यालय से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से बीए इंग्लिश (ऑनर्स) पास की और यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।

कंचन के पास संसाधनों की कमी थी, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कई बार उन्हें निराशा हाथ लगी, लेकिन एक बार फिर वह दोगुने उत्साह के साथ तैयारी में जुट गईं।