हर कोई जानता है कि यहां पाई जाने वाली वनस्पतियों और जीवों की विविधता कितनी हैदेहरादून. इसे बचाने के लिए उत्तराखंड की देहरादून घाटी को पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। लेकिन यहां भी सभी नियमों को तोड़कर निर्माण और खनन संबंधी कार्य किया जा रहा है। आखिरकार हाई कोर्ट की नींद टूटी और उन्होंने सरकार से इस संबंध में पूछा।
हाईकोर्ट कि बल्लीवाला और आईएसबीटी फ्लाईओवर ममरण
नैनीताल हाईकोर्ट ने शहरी विकास सचिव बल्लीवाला और आईएसबीटी फ्लाईओवर को लेकर पूछे सवाल। हाईकोर्ट ने नक्शे और मास्टर प्लान के बारे में पूछा कि बल्लीवाला और आईएसबीटी फ्लाईओवर का निर्माण किस चीज के तहत किया गया? कोर्ट ने इस संबंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने के निर्देश दिये हैं।
कोर्ट ने राज्य के स्थायी अधिवक्ता को भी इस मामले को गहनता से देखने को कहा है। पूरा मामला यह है कि देहरादून निवासी आकाश वशिष्ठ ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि वर्ष 1989 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने दूनघाटी को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था, लेकिन 34 साल बाद भी यह शासनादेश लागू नहीं हुआ है।
प्रभावी ढंग से कार्यान्वित नहीं किया गया। जनहित याचिका में यह भी कहा गया कि देहरादून विकास में मास्टर प्लान के मुताबिक निर्माण की योजनाएं नहीं बनाई गईं। याचिका में बताया गया कि पर्यटन के लिए न तो विकास कार्यों का कोई मास्टर प्लान है और न ही पर्यटन विकास योजना। दूनघाटी में विकास कार्य, खनन, पर्यटन एवं अन्य गतिविधियां अनियमित तरीके से चल रही हैं।
जनहित याचिका में मांग की गई है कि दूनघाटी में सभी विकास कार्य मास्टर प्लान के तहत होने चाहिए। लेकिन इस पर कोई उचित अनुवर्ती नहीं है। प्रत्येक विकास कार्य को करने से पहले वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
कोर्ट ने शहरी विकास सचिव से इस संबंध में विस्तृत जानकारी देने को कहा है। कोर्ट का फैसला बाद में होगा देहरादून फ्लाईओवर हाईकोर्ट मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी को होगी।