पहाड़ों में पिरूल के बारे में हर कोई जानता है। जिस पिरूल को कभी बेकार समझा जाता था, उसका उपयोग कुछ कार्यों में किया जाता था और बाकी को जला दिया जाता था, जिससे उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पर्यावरण अशांत हो गया था, जिसके कारण हर साल पिरूल के जंगलों में तेजी से आग लगने की घटनाएं हो रही हैं। लेकिन सरकार द्वारा इस पिरूल का कई तरह से उपयोग करने के नये प्रयास किये जाने के बाद यहां रहने वाले लोग अपनी जीविका चला रहे हैं। आज हम आपको बता रहे है नैनीताल के भारती की कहानी।
![](https://awaazuttarakhand.in/wp-content/uploads/2023/11/Untitled-design-8-7.png)
भारती को देखकर अब और लोग भी आ रहे है आगे
अब यही पिरूल पहाड़ में स्वरोजगार का जरिया बन गया है। आज हम आपको राज्य की एक और प्रतिभाशाली बेटी से मिलवाने जा रहे हैं, जिसने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उस पिरूल को लोगों के लिए वरदान बना दिया, जिसे कभी पहाड़ के जंगल के लिए अभिशाप माना जाता था। चीड़ की पत्तियों से पिरूल गिरता है।
इसका उपयोग घर की सजावट की वस्तु और रोजगार के साधन के रूप में किया जा सकता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं राज्य के नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक के ध्वेती गांव निवासी भारती जीना (भूमि) की। भारती न केवल अपनी पढ़ाई कर रही हैं बल्कि बहुत कम उम्र में आत्मनिर्भर भी बन रही हैं। उन्होंने अन्य लोगों को भी स्वरोजगार का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
![](https://awaazuttarakhand.in/wp-content/uploads/2023/11/Untitled-design-9-9.png)
आपको बता दें कि भारती जीना पिरूल से टोकरियाँ, गमले और अन्य सजावटी सामान बनाकर अच्छी आय अर्जित कर रही हैं। भारती के लिए अच्छी बात यह है कि उन्हें इन उत्पादों को बेचने के लिए बाजार ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ी। भारती के बनाए ये उत्पाद पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी काफी पसंद आ रहे हैं और वे स्थानीय बाजार से इस उत्पाद को खरीद रहे हैं।
आपको बता दें कि भारती ने यह कला अपने दादा से सीखी है। वह कहती हैं कि वह पिरूल से बने उत्पादों को कई प्रदर्शनियों में भी प्रदर्शित करती हैं, जहां उन्हें काफी सराहना मिली।
![](https://awaazuttarakhand.in/wp-content/uploads/2023/11/Untitled-design-10-7.png)
भारती जीना अपनी पढ़ाई में हलद्वानी से संगीत में बीए कर रही हैं। भारती के पिता तेज सिंह जीना किसान हैं और मां कमला जीना आंगनवाड़ी केंद्र में कार्यरत हैं. भारती ने अपने काम पर कहा कि पिरूल का उपयोग विभिन्न उत्पाद बनाने में करने से लोगों को कई तरह से मदद मिल सकती है, अगर उचित प्रशिक्षण दिया जाए तो इससे लोग आत्मनिर्भर बन सकते हैं और लोगों के लिए रोजगार भी बढ़ेगा।