उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की अधिकांश आबादी विपरीत परिस्थितियों से घिरी हुई है, यहां की मुख्य समस्या नौकरी की कमी है। यही कारण है कि युवा लोग यहां से पलायन कर जाते हैं। अलग राज्य बनने तक यहां रहने वाले लोग पशुपालन और खेती पर निर्भर थे। अब भले ही पहाड़ के अधिकांश युवा रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर रुख करना अपनी प्राथमिकता मानते हैं। उनके लिए बुजुर्ग न केवल पशुपालन और खेती की मदद से अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं बल्कि अपनी जीवनशैली भी बनाए रखते हैं। सेहत भी कभी ख़राब नहीं होने दी।
गोबर से धूप बत्ती बनाकर खड़ा करा लाखों का कारोबार
आज हम आपको राज्य के एक ऐसे होनहार युवा से मिलवाने जा रहे हैं जो न सिर्फ पशुपालन कर स्वरोजगार का अलख जगा रहा है बल्कि उसकी सालाना आय भी शहरों में छोटे-मोटे काम करने वाले लोगों से कहीं ज्यादा है। अपना जीवन यापन करें. उनकी कमाई करीब 12 से 14 लाख रुपए तक बताई जाती है।
हम बात कर रहे हैं दिल्ली में इंजीनियर की नौकरी छोड़कर घर लौटे राकेश रावत की, जो मूल रूप से पौढ़ी गढ़वाल जिले के नरसिया गांव भाकड़ के रहने वाले हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली में अच्छी नौकरी छोड़ने के बाद राकेश ने अपने गृहनगर में काम करना शुरू किया और अपने दोस्त शीशपाल रावत के साथ गाय पालने का काम शुरू किया।
इसके साथ ही वह गाय से प्राप्त दूध और घी को बाजार में बेचकर न सिर्फ अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं बल्कि ज्यादातर जगहों पर फेंके जाने वाले गाय के गोबर का भी सदुपयोग कर रहे हैं, इसके साथ ही राकेश उन्हें अगरबत्तियों में बदलना। इसके साथ ही वह बाजार में गोमूत्र भी बेच रहा है।
आपको बता दें कि राकेश ने 2017 में अपने गांव लौटकर स्वरोजगार शुरू किया, वह अपनी अगरबत्ती को देवभूमि दर्शन के नाम से प्रदेश के अन्य जिलों के साथ-साथ देश के बड़े शहरों में भी बेच रहे हैं। आप भी उनकी धूप खरीदते होंगे। देवभूमि दर्शन नाम की उनकी गाय के गोबर से बनी यह धूप रसायन मुक्त है।
देश-प्रदेश में लोगों के घरों और मंदिरों को सुगंधित करने वाली इस धूप में गाय के गोबर के अलावा कुंजा और सुमैया की जड़ों के साथ-साथ जटामासी जैसे औषधीय पौधों की जड़ों का भी उपयोग किया गया है।
आज इस धूप का उपयोग उत्तराखंड के चार धामों और वृन्दावन, बालाजी, खाटूश्याम जैसे कई बड़े तीर्थस्थलों और प्रसिद्ध मंदिरों में भगवान की पूजा के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा दिल्ली एनसीआर के साथ-साथ देश के अन्य शहरों में भी इस अगरबत्ती की काफी मांग है।