यह सच है कि लोग अपना मूल स्थान छोड़ सकते हैं लेकिन उनका स्थान उन्हें कभी नहीं छोड़ेगा। मिट्टी की महक कोई कैसे भूल सकता है? उत्तराखंड वह राज्य है जिसकी मुख्य समस्या प्रवासन है, जिसके कई निवासी विभिन्न कार्य करने और अपनी आजीविका कमाने के लिए दिल्ली में रह रहे हैं। हो सकता है कि वे पहाड़ छोड़कर शहरों में बस गए हों, लेकिन उन्हें ख़ुशी तब मिलती है।
23 दिसम्बर को लगेगा उत्तराखंड के सितारो का दिल्ली में जमघट
जब वे अपनी उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा को शहरों में भी जीवित रखते हैं।इसका अनोखा उदाहरण है उत्तराखंड महोत्सव। अगर आप देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में रह रहे हैं तो आप 25 दिसंबर को भी आ सकते हैं क्योंकि उत्तराखंड के कई दिग्गज कलाकार आपको अपनी धुनों पर नचाने वाले हैं। 25 दिसंबर को इंदिरापुरम में उत्तराखंड महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। पिछले दो दशकों से हर बार इसे बेहतर बनाने का प्रयास किया गया है।
जब हमने इस कार्यक्रम का आयोजन करने वाले लोगों से मुलाकात की तो उनका कहना है कि उन्हें यह जानकर बहुत खुशी हुई कि शहरों में रहते हुए भी ये लोग उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा और खुशबू को जीवित रखे हुए हैं। उत्तराखंड महोत्सव सिर्फ एक आयोजन नहीं बल्कि दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले अनगिनत उत्तराखंडियों के लिए एक उपहार है।
अगर आप भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेना चाहते हैं और अपने लोगों के बीच अपनी संस्कृति से रूबरू होना चाहते हैं तो इंदिरापुरम स्थित शिप्रा सन सिटी का दौरा कर सकते हैं। यहां सेंट्रल पार्क में कार्यक्रम की पूरी तैयारी कर ली गई है. कार्यक्रम का मंच और आयोजन स्थल एक विशाल मैदान में आयोजित किया जा रहा है।
इस शो को संचालित करने की जिम्मेदारी उत्तरांचल देवभूमि सांस्कृतिक समिति की मजबूत टीम ने ली है, जिसके हर सदस्य ने पूरे उत्तराखंड को एक क्षेत्र में एकजुट करने का काम किया है। अध्यक्ष श्री चंद्र सिंह रावत, उपाध्यक्ष श्री कमल नौटियाल, महासचिव श्री चंद्र मोहन चौहान, सचिव श्री महेंद्र सिंह रावत, कोषाध्यक्ष श्री राकेश रावत और पूरी सांस्कृतिक समिति बधाई की पात्र है।
इस शो की खास बात या आकर्षण का केंद्र यह है कि देश-दुनिया में अपनी संस्कृति का लोहा मनवाने वाले लोक कलाकार जितेंद्र तोमक्याल, हेमा ध्यानी, सौरभ मैठाणी यहां आ रहे हैं।
इसके अलावा अपनी सुरीली आवाज से सबका दिल जीतने वाली संगीता ढौंडियाल भी यहां आ रही हैं. आज हम सब नौकरी और आजीविका की तलाश में उत्तराखंड छोड़कर शहरों में बस गए हैं, लेकिन देवभूमि और पहाड़ों की यादें हमारे दिलों में बसी हुई हैं। ऐसे आयोजनों से हम उन यादों को एक बार फिर से जी सकते हैं।