नवीन बजेठा ने हमें उत्तराखंड में युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक कहानी बताई है, उन्होंने पलायन को आईना दिखाकर युवाओं को रास्ता दिखाया है। अल्मोडा के मसाल खाल गांव से ताल्लुक रखते हैं। उनका जीवन आसान नहीं था. वह 14 साल तक देहरादून में रहे और एक प्राइवेट नौकरी की, लेकिन वह इससे कुछ खास नहीं कर पाए। नौकरी करने के बाद वह गांव लौट आए और यहां की बंजर जमीन पर बागवानी कर सेब का उत्पादन शुरू किया। आज वह सालाना 6 लाख रुपये कमा रहे हैं और गांव के 10 लोगों को रोजगार भी दिया है।
20 नाली सुखी जमीन में लहरा दी सेब की फसल
एक तरफ जहां पहाड़ में बढ़ती बेरोजगारी के कारण पहाड़ का युवा महानगरों की ओर रुख कर रहा है। चूंकि गांवों में नौकरी के अवसर कम हैं, इसलिए युवा बेहतर भविष्य की तलाश में शहरों की ओर जा रहे हैं। इन सबके बीच नवीन एक मिसाल बन गए हैं, जिन्होंने अपने गांव लौटकर खेती करने का फैसला किया और आज अच्छी कमाई कर रहे हैं. उनका यह कदम अन्य युवाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गया है जो गांव लौट रहे हैं और अब रोजगार के लिए शहरों का रुख करने के बजाय अपने गांवों में ही अवसर तलाश रहे हैं।
नवीन बजेठा अल्मोडा जिले के लमगड़ा विकासखंड के मसान खाल गांव के रहने वाले हैं, उन्होंने बताया कि उन्होंने 14 साल तक देहरादून में रहकर निजी कंपनियों में काम किया, लेकिन उनके मन में कुछ नया करने का जुनून था और फिर वह गांव लौट आए और बागवानी और सेब की खेती शुरू कर दी। प्रोडक्शन में हाथ आजमाया और नतीजा ये हुआ कि उन्हें सफलता मिली।
बेरोजगारी के कारण पलायन को देखते हुए नवीन ने खेती को अपना पेशा चुनकर स्वरोजगार करने का फैसला किया। उन्होंने एप्पल मिशन योजना के तहत अपनी 20 नाली बंजर भूमि को आबाद कर उसमें सेब के पेड़ लगाए, अब यह उनके लिए रोजगार का जरिया बन गया है, अब उनकी बंजर भूमि पर सेब उगाए जाते हैं। पेड़ खिल रहे हैं. उनके सेब के बगीचे में हर साल 20 टन सेब का उत्पादन होता है, जिससे सालाना 6 लाख रुपये की आमदनी होती है. इसके अलावा, उन्होंने अपने गांव के 10 लोगों को रोजगार भी दिया है, जो प्रति माह छह से सात हजार रुपये कमा रहे हैं।