उत्तराखंड के बच्चों की जितनी तारीफ की जाए कम है क्योंकि वे अपनी मेहनत और लगन से हर क्षेत्र में अपनी खास पहचान बना रहे हैं, चाहे वह संगीत हो या खेल या फिर पढ़ाई-लिखाई। कौशल न केवल पहाड़ के लोगों के लिए बल्कि अन्य राज्यों के लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनता है। आज हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के ऐसे ही प्रेरणादायक बच्चे के बारे में जिनका नाम है दक्ष कार्की, जो उत्तराखंड के मशहूर लोकगायक स्वर्गीय पप्पू कार्की के बेटे हैं, जिन्होंने अपने पिता की मौत के बाद छोटी सी उम्र में हिम्मत जुटाई और न सिर्फ उनका ख्याल रखा। खुद भी बल्कि अपने पिता की विरासत को भी आगे बढ़ाया।
पाँच साल की उम्र में उठ गया था पिता का साया
आपको बता दें कि दक्ष कार्की का जन्म 27 मई को हुआ था, वह मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग तहसील के सैनार ग्राम पंचायत के शेलावन तोक के निवासी हैं और वर्तमान में नैनीताल जिले के हलद्वानी में पढ़ाई कर रहे हैं। उनके पिता का नाम पप्पू कार्की और माता का नाम कविता कार्की है। दक्ष कार्की ढीले, उनके पिता पप्पू कार्की की मौत हैड़ाखान मोटर वे, नैनीताल में एक भीषण सड़क दुर्घटना में हो गयी। जिसके कारण कम उम्र में ही उनके पिता का साया उनके सिर से उठ गया लेकिन दक्ष ने कभी हिम्मत नहीं हारी और अपने दिवंगत पिता के नक्शेकदम पर चलना शुरू कर दिया।
बावजूद इसके दक्ष ने कभी हिम्मत नहीं हारी और अपने दिवंगत पिता के नक्शेकदम पर चलना शुरू कर दिया। जीवन का यह क्षण दक्ष और उसकी माँ के लिए बहुत कठिन क्षण था क्योंकि उनके साथ कुछ अप्रत्याशित घटित हुआ जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। बहुत ही कम उम्र में दक्ष कार्की ने अपने पिता की याद में और अपने सपनों को पूरा करने के लिए न केवल अपने युवा कंधों पर बोझ उठाया, बल्कि अपने पिता के दोस्तों और अपनी मां के सहयोग से उन्होंने यूट्यूब से एक छोटा सा सफर शुरू किया जो धीरे-धीरे बढ़ता गया।
जैसे ही इस नन्हें कलाकार का पहला एल्बम ‘सुन ले दगड़िया’ यूट्यूब पर रिलीज हुआ तो हर कोई इस बच्चे की आवाज और पिता के अंदाज का कायल हो गया. आज भी जब ‘सुन ले दगड़िया’ गाना बजता है तो लोगों को पप्पू कार्की का चेहरा याद आ जाता है। आपको बता दें कि दक्ष कार्की द्वारा गाए अन्य प्रसिद्ध गीतों में “काले कौवा काले” और “उत्तरायणी कौतिक लागी रो, सरयू का बागड़ मा” शामिल हैं, जिन्हें दर्शकों ने काफी पसंद भी किया। यही कारण है कि आज भी लोग दक्ष की सुरीली आवाज सुनने का बेसब्री से इंतजार करते हैं।