आस्था के लिए पैसों की जरूरत नही, उत्तराखंड के 15 वर्षिय निलांजन ने करी ऐसी यात्रा जो बन गई मिसाल

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पिथौरागढ़ क्षेत्र से एक प्रेरक खबर आ रही है, यहां नगर तराई के 15 वर्षीय नीलांजन पोखरिया ने जीरो बजट में आदि कैलाश की यात्रा पूरी की है। इस युवा लड़के ने यह यात्रा की है, वह उत्तराखंड के पहाड़ों में जीवन की कठिनाइयों को समझता था, उसने जिद करके घर छोड़ दिया और बिना संसाधनों के यात्रा पर निकल पड़ा। यहां उनकी मुलाकात सीएम धामी से हुई, जिन्होंने नीलांजन के साहस और जुनून की काफी सराहना की।

अपने अनुभव को जल्द ही लाएंगे लोगो के सामने

नीलांजन नगरा तराई के सामाजिक कार्यकर्ता और विहिप नेता रणदीप पोखरिया के बेटे हैं। उनके पिता ने 7 जून को मेडिकल कैंप लगाया तो उन्होंने भी उनके साथ चलने की जिद की. उम्र की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उनके पिता ने उन्हें बड़ों के बजाय अपनी ही उम्र के लोगों का एक समूह बनाने की सलाह दी। जब नीलांजन ने अपनी हमउम्र सहेलियों से इस यात्रा पर जाने के लिए सहमति मांगी तो सभी ने उसके माता-पिता के इनकार का हवाला दिया।

ऐसा कहा जाता है कि कैलाश का इलाका इतना कठिन है कि कोई भी इतने छोटे बच्चों को इतनी कठिन यात्रा पर भेजने की हिम्मत नहीं कर सकता। दोस्तों ने जाने से मना कर दिया, लेकिन नीलांजन आदि कैलाश जाने और उसकी दिव्यता और भव्यता का आनंद लेने के लिए बेताब थे। इसके साथ ही उनके मन में कुछ गहरी बात भी चल रही थी. उसने अपने पिता से अकेले यात्रा पर जाने का इरादा जताया।

रणदीप पोखरिया ने नीलांजन का समर्पण देखने के बाद यात्रा के गहरे उद्देश्य को समझते हुए अनुमति दे दी। जिस पर नीलांजन ने कहा कि मैं बिना पैसे लिये चला जाऊंगा. मैं आपके किसी भी परिचित या रिश्तेदार के घर न तो रुकूंगा और न ही खाऊंगा। उन्होंने जो तीसरी बात कही वह अद्भुत थी। उन्होंने कहा, मैं पहाड़ी शहरों को नहीं बल्कि वहां के गांवों को समझना चाहता हूं। मैं वहां जीवन की कठिनाइयों को देखना चाहता हूं।

अपने पिता और रिश्तेदारों की अनुमति से, नीलांजन 14 जून को अपने सामान्य तरीके से घर से निकल गया। उन्होंने अपनी यात्रा पैदल ही शुरू की और कभी-कभी किसी की बाइक, ट्रैक्टर, ट्रक और कार पर सवार होकर अपनी यात्रा जारी रखी। पहाड़ और पहाड़ के गांवों की पीड़ा को समझते हुए और यह सोचते हुए कि पहाड़ इतनी जीवनदायिनी नदी दे रहे हैं, उन्हें प्यास कैसे लग सकती है? इतनी दूर से लोग अस्पताल कहां जाएंगे? अगर बच्चों के स्कूल इतनी दूर होंगे तो उन्हें अच्छी शिक्षा कैसे मिल पाएगी? गाँवों में महिलाएँ इतना भारी बोझ कैसे उठा पाती हैं?पहाड़ों को नंगे होते देख मन इस चिंता से भर जाता है कि अगर ये पेड़ कटते रहे तो हमें सिर के लिए छाया और सांस के लिए स्वच्छ हवा कैसे मिल पाएगी? इस पूरे कालखंड में ये प्रश्न मेरे मन में उठते रहे, कभी तंबू में, कभी मंदिर में, कभी विश्राम गृह में।

यह संयोग ही था कि जब नीलांजन आदि कैलाश पहुंचे तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए वहां मौजूद थे. जब उन्होंने सुना कि नगर तराई का यह लड़का अकेले यहां पहुंचा है तो मुख्यमंत्री के करीबियों के लिए यह आश्चर्य का विषय था। उन्होंने नीलांजन का परिचय मुख्यमंत्री से कराया और बताया कि ये खटीमा के नीलांजन हैं, जो बिना किसी संसाधन के पहाड़ को समझने निकले हैं। मुख्यमंत्री ने नीलांजन के साहस की सराहना की।