पहाड़ की बेटी ने 12 साल की उम्र से करा लिखना शुरू, उत्तराखंड की दिया आर्या की किताब से बाहर आई पहाड़ की बेटियों की मुश्किलें

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तमाम कार्यक्रमों के बावजूद उत्तराखंड के सुदूर इलाकों में बेटियों का जीवन अभिशप्त माना जाता है। भले ही समय धीरे-धीरे बदल रहा है, लेकिन राज्य के सुदूर पहाड़ी इलाकों में हालात अभी भी वैसे ही बने हुए हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भी बाल विवाह, भ्रूण हत्या और बेटियों व महिलाओं के प्रति भेदभाव जैसी कुरीतियों की खबरें अक्सर देखने को मिल जाती हैं। दरअसल यह समस्या पहाड़ के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है।

माँ से प्रेरणा लेकर किताब में लिखी बहुत सारी मुश्किलें

इन्हीं तथ्यों को सामने लाते हुए पहाड़ की एक बेटी ने एक किताब लिखी है। आज हम आपको प्रदेश की एक होनहार बेटी से मिलवाने जा रहे हैं जो छोटी सी उम्र में अपनी कलम के जादू से लड़कियों के प्रति जागरूकता फैलाकर महिला समाज की इन समस्याओं को उजागर करने का काम कर रही है। लड़की का नाम दीया आर्य है, जो मूल रूप से राज्य के बागेश्वर जिले के कपकोट तहसील क्षेत्र की रहने वाली हैं, जो बच्चों की लेखिका हैं।

हर कोई बच्ची की तारीफ कर रहा है कि इतनी कम उम्र में जब खेलने-कूदने के दिन बीतते थे, दीया समाज की बड़ी समस्याओं को समझने लगी थी, जिसका सकारात्मक परिणाम यह है कि आज उसके पास लिखने का ऐसा हुनर ​​है कि वह अपनी कई किताबें लिख चुकी हैं. प्रकाशित हो चुकी है।

दीया आर्य ने बताया कि वह बेहद सामान्य परिवार से हैं। उनकी माता का नाम कविता देवी और पिता का नाम रमेश राम है। खेती ही उनके परिवार की आय का एकमात्र स्रोत है। उसने बताया कि वह राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय उतरौरा (कपकोट) से पढ़ाई कर रही है। दीया बताती हैं कि उन्होंने 12 साल की उम्र में लिखना शुरू कर दिया था।

लेखिका बनने के अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए दीया कहती हैं कि उन्हें लिखने की प्रेरणा अपनी मां से मिली, जब वह समाज के ताने और आलोचनाएं सुन-सुनकर थक गई थीं। दीया बताती हैं कि बेटियों के साथ होने वाले भेदभाव पर आधारित उनकी नई किताब ‘बेटियां वरदान या अभिशाप’ आरवी पब्लिकेशन से प्रकाशित होने वाली है। आपको बता दें कि इससे पहले भी उनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिसमें मदर एज़ प्रथम गुरु, एहसास, टायर्ड जर्नी, अंधेरा जग आदि शामिल हैं।